Wednesday 12 August 2020

गिर गया है यह इंसान | Gir Gaya hai Yeh Insaan

 

गिर गया है यह इंसान, मज़हब ही है सबसे बड़ा गुनेहगार  |

कोई मज़हब की किताब नहीं पढ़ेगा बेवकूफ, तेरी करतूतें देंगी दुनिआ को सार ||

 

क्या इतना छोटा है यह भगवन, यह खुदा, कि किसीकी एक की सोच पर हो जायेगा नाराज़ ||

सूझ बूझ दी है तेरे भगवान् ने तुझे, गलत बात पर ध्यान मत दे, यह तो नहीं है कोई राज़ ||

 

सड़कें फूंकों, गाड़ियां फूंकों, फूँक डालो यह संसार |

जब होगा हिसाब अंत में, इस पाप के साथ कौन सी नाव लगाएगी तुझको पार?

                                                                                                                                       

रंग में, पहनावे में, ज़मीन में, नदिओं में सब जगह ढूंढे तू अपना धरम |

हर किताब में लिखी है बस एक बात, बस नेक रख तू अपना करम ||

 

इतना तुझे नहीं समझायेगा, सम्जहने वालायह तुझे खुद ढूंढना होगा ज्ञान |

रहने दे पगले दुनिआ में कमी ढूंढना, बस एक बार तू अपने अंदर झाँख ||

 

गलत को गलत बोलो और सही को सहीइसके ऊपर नहीं है कोई सच्चाई और ईमानदारी।

पर तुझे नज़र आये बस दूसरो कि गल्तीआं  , ओढ़ के उन गलतिओं की चादर तू बोले की तेरी गल्तीआं है  जनहित में  जारी ||

 

पर क्या करे आज का यह नागरिक इतना बुंद्धिजीव बन चूका है की बिना सोचे समझे हर बात पे रहता है गुस्सा।

खून की सियाही बना डाली है तूने, क्या सिर्फ कल दो दिखावे के अच्छे काम करके मिट जायेगा यह किस्सा।।

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